aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "chor-qadam"
हम कहाँ और कहाँ चोर-क़दमशह कोई पाएँ तो खुल कर सोचें
सोज़-ए-शम्-ए-हिज्र से शब जल गएढलते ढलते आँसू हम ख़ुद ढल गए
घर के दरवाज़े खुले हों चोर का खटका न होबे-सर-ओ-सामान कोई शहर में ऐसा न हो
कई सूखे हुए पत्ते हरे मालूम होते हैंहमें देखो कहीं से दिल-जले मालूम होते हैं
गुलों के हुस्न-ए-ज़ेबा पर फबन महसूस होती हैतिरी परछाईं जब सेहन-ए-चमन महसूस होती है
परतव-ए-रुख़ का तिरे दिल में गुज़र रहता हैसाथ आईने के आईने का घर रहता है
मैं तुझे सहल बहुत लगता हूँतू कभी चार क़दम चल मुझ में
नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिएरही न तर्ज़-ए-सितम कोई आसमाँ के लिए
हिना ये कहती है लो बे-ज़बान पा के मुझेजब आए आप गए चोरियाँ लगा के मुझे
यूँ तो चार-क़दम पर मेरी मंज़िल थीलेकिन चलते चलते जीवन बीत गया
झंकार से मैं चार-क़दम आगे जाऊँगाज़िंदान में हुआ जो सलासिल से दिल उचाट
मंज़िल पे न पहुँचे उसे रस्ता नहीं कहतेदो चार क़दम चलने को चलना नहीं कहते
यार ये चार क़दम की क्या हमराही है!थोड़ी देर तो दिल को चलता रहने दे
थी कैसी तलब जिस को पकड़ने के जुनूँ मेंदिल चलता रहा चार क़दम हात से आगे
दो चार क़दम चल कर दो चार घड़ी रुकनामंज़िल भी तुम्हारी है रस्ता भी तुम्हारा है
मेरे क़दमों से तू दो चार क़दम पीछे चलमेरे गिरते हुए लम्हों को उठाए चला जा
वो नाज़नीं ये नज़ाकत में कुछ यगाना हुआजो पहनी फूलों की बध्धी तो दर्द-ए-शाना हुआ
हम ने तो उन को भी लुटते देखा हैजिन के चार-क़दम पर थाना होता है
आओ दो चार क़दम चल के भी देखें यारोहम-सफ़र अपने कहाँ हम को दग़ा देते हैं
सफ़र में हौसला दरकार है हर इक सूरतये क्या कि चार-क़दम पर ही डगमगाने लगे
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