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ग़ज़ल
क्या दबदबा-ए-नादिर क्या शौकत-ए-तैमूरी
हो जाते हैं सब दफ़्तर ग़र्क़-ए-मय-ए-नाब आख़िर
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मैं तो हर हालत में ख़ुश हूँ लेकिन उस का क्या इलाज
डबडबा आती हैं वो आँखें 'जिगर' मेरे लिए
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
बशीर दादा
ग़ज़ल
बे-ख़ुदी में डबडबा आए हैं आँसू आँख में
अल-मदद ऐ ज़ब्त छलका चाहता है जाम-ए-इश्क़
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
डबडबा जाएँगी आँखें ख़ून रो उट्ठेगा दिल
इश्क़ की राहों में अहल-ए-हक़ की क़ुर्बानी न देख
अनवर सादिक़ी
ग़ज़ल
ज़मीं के ज़ुल्म भी बर्दाश्त हम ने हँस के किए
तिरा भी दबदबा ऐ जौर-ए-आसमाँ देखा
क़ैसर हैदरी देहलवी
ग़ज़ल
सभी को 'इज़्ज़त-ओ-शोहरत की भूक ले डूबी
सुख़न में ख़ौफ़ था लहजे में दबदबा नहीं था