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ग़ज़ल
आँखों को नक़्श-ए-पा तिरा दिल को ग़ुबार कर दिया
हम ने विदा-ए-यार को अपना हिसार कर दिया
आतिफ़ वहीद यासिर
ग़ज़ल
शुरूअ' कब हो न जाने नज़ाकतों का सफ़र
मैं दिल को बैठा हूँ शायान-ए-नक़्श-ए-पा कर के
जोहर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
सदियों से धड़कती हुई इक चाप थी दिल में
एक एक घड़ी सूरत-ए-नक़्श-ए-कफ़-ए-पा थी
ख़ुर्शीद रिज़वी
ग़ज़ल
लिया है गाहे-गाहे नक़्श-ए-पा-ए-यार का बोसा
न वो बाहर निकलता ये भी अरमाँ दिल में रह जाता
सय्यद अहमद हुसैन शफ़ीक़ लखनवी
ग़ज़ल
ये नक़्श-ए-पा-ए-नाज़ है इक शम-ए-हुस्न का
दिल से लगाए बैठे हैं दाग़-ए-जिगर को हम
नज़ीर हुसैन सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ये नक़्श-ए-पा-ए-नाज़ है इक शम’-ए-हुस्न का
दिल से लगाए बैठे हैं दाग़-ए-जिगर को हम