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ग़ज़ल
रू-ए-रौशन पर जो तुम ने हाथ रखा नाज़ से
चाँद का हाला नज़र आईं तुम्हारी चूड़ियाँ
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
जाँचता हूँ वुसअत-ए-दिल हमला-ए-ग़म के लिए
इम्तिहाँ है रंज-ओ-हिरमाँ की फ़रावानी मुझे
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
हमला अपने पे भी इक बाद-ए-हज़ीमत है ज़रूर
रह गई है यही इक फ़त्ह ओ ज़फ़र की सूरत