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ग़ज़ल
तिरी जुस्तुजू में निकले तो 'अजब सराब देखे
कभी शब को दिन कहा है कभी दिन में ख़्वाब देखे
जमील मलिक
ग़ज़ल
तेरा ख़याल ख़्वाब ख़्वाब ख़ल्वत-ए-जाँ की आब-ओ-ताब
जिस्म-ए-जमील-ओ-नौजवाँ शाम-ब-ख़ैर शब-ब-ख़ैर
जौन एलिया
ग़ज़ल
ये शिकस्त-ए-दीद की करवटें भी बड़ी लतीफ़ ओ जमील थीं
मैं नज़र झुका के तड़प गया वो नज़र बचा के निकल गए