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ग़ज़ल
पागल पंछी ब'अद में चहके पहले मैं ने देखा था
उस जंपर की शिकनों में हल्का सा रंग बहाराँ का
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
जब वो जमाल-ए-दिल-फ़रोज़ सूरत-ए-मेहर-ए-नीमरोज़
आप ही हो नज़ारा-सोज़ पर्दे में मुँह छुपाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
निहाल सब्ज़ रंग में जमाल जिस का है 'मुनीर'
किसी क़दीम ख़्वाब के मुहाल में मिला मुझे