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ग़ज़ल
गुहर को जौहरी सर्राफ़ ज़र को देखते हैं
बशर के हैं जो मुबस्सिर बशर को देखते हैं
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
है तसव्वुर बस-कि आँखों में ख़त-ए-रुख़्सार का
आइने की तरह जौहर-दार आँखें हो गईं