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ग़ज़ल
ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए
मंज़िल के लिए दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल आ जाए
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
अतहर नफ़ीस
ग़ज़ल
कहते ही नश्शा-हा-ए-ज़ौक़ कितने ही जज़्बा-हा-ए-शौक़
रस्म-ए-तपाक-ए-यार से रू-ब-ज़वाल हो गए
जौन एलिया
ग़ज़ल
कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला
और डूबने वालों का जज़्बा भी नहीं बदला
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
ख़ुदाया जज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उल्टी है
कि जितना खींचता हूँ और खिंचता जाए है मुझ से
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
रफ़्ता रफ़्ता रंग लाया जज़्बा-ए-ख़ामोश-ए-इश्क़
वो तग़ाफ़ुल करते करते इम्तिहाँ तक आ गए