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ग़ज़ल
और क्या कहियेगा आईना-ए-हैरत के सिवा
उन की महफ़िल में मुझे इज़्न-ए-तकल्लुम तो नहीं
एहसास मुरादाबादी
ग़ज़ल
इसे तौहीन-ए-बाल-ओ-पर न कहियेगा तो क्या कहिए
वो ताइर जो गिरफ़्तार-ए-हवा होने से डरता है
राही हमीदी चाँदपुरी
ग़ज़ल
ये न कहियेगा कि हम ज़ख़्मों पे छिड़केंगे नमक
जिस किसी ने कि न चक्खा हो मज़ा उस से कहो
किशन कुमार वक़ार
ग़ज़ल
मुजरिम-ए-उल्फ़त हैं अपने जुर्म का इक़रार है
जो भी कहियेगा करेंगे पेश वो जुर्माना हम
तालिब देहलवी
ग़ज़ल
शहर का शहर ही नासेह हो तो क्या कीजिएगा
वर्ना हम रिंद तो भिड़ जाते हैं दो-चार के साथ
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
क्या गुल खिलेगा देखिए है फ़स्ल-ए-गुल तो दूर
और सू-ए-दश्त भागते हैं कुछ अभी से हम