aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "kakar"
सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्काँ मेंपलंग ज़ाविए उस की कमर के देखते हैं
भूले से मुस्कुरा तो दिए थे वो आज 'फ़ैज़'मत पूछ वलवले दिल-ए-ना-कर्दा-कार के
ये बस्ती है मुसलमानों की बस्तीयहाँ कार-ए-मसीहा क्यूँ करें हम
मुझ पे ही ख़त्म हुआ सिलसिला-ए-नौहागरीइस क़दर गर्दिश-ए-अय्याम पे रोना आया
जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न थासच कहो कुछ तुम को भी वो कार-ख़ाना याद है
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद होवही या'नी वा'दा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो
तुम हो पहलू में पर क़रार नहींया'नी ऐसा है जैसे फ़ुर्क़त हो
तुम्हारे हिज्र की शब-हा-ए-कार में जानाँकोई चराग़ जला लूँ अगर इजाज़त हो
झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहींदबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं
यूँही मौसम की अदा देख के याद आया हैकिस क़दर जल्द बदल जाते हैं इंसाँ जानाँ
न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँकिसी काम में जो न आ सके मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ
'हफ़ीज़' उन से मैं जितना बद-गुमाँ हूँवो मुझ से उस क़दर बरहम न होंगे
ले गया छीन के कौन आज तिरा सब्र ओ क़रारबे-क़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी
जिस क़दर उस से त'अल्लुक़ था चला जाता हैउस का क्या रंज हो जिस की कभी ख़्वाहिश नहीं की
जुनूँ में जितनी भी गुज़री ब-कार गुज़री हैअगरचे दिल पे ख़राबी हज़ार गुज़री है
तेरी गली में सारा दिनदुख के कंकर चुनता हूँ
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाएअब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
हँसा हँसा के शब-ए-वस्ल अश्क-बार कियातसल्लियाँ मुझे दे दे के बे-क़रार किया
इस क़दर हम से झिजकने की ज़रूरत क्या हैज़िंदगी भर का है अब साथ क़रीब आ जाओ
न हुआ नसीब क़रार-ए-जाँ हवस-ए-क़रार भी अब नहींतिरा इंतिज़ार बहुत किया तिरा इंतिज़ार भी अब नहीं
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