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ग़ज़ल
ख़िज़्र-सुल्ताँ को रखे ख़ालिक़-ए-अकबर सरसब्ज़
शाह के बाग़ में ये ताज़ा निहाल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मा'रिफ़त ख़ालिक़ की आलम में बहुत दुश्वार है
शहर-ए-तन में जब कि ख़ुद अपना पता मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
हुजूम क्यूँ है ज़ियादा शराब-ख़ाने में
फ़क़त ये बात कि पीर-ए-मुग़ाँ है मर्द-ए-ख़लीक़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
आप बनाता है पहले फिर अपने आप मिटाता है
दुनिया का ख़ालिक़ हम को इक ज़िद्दी बच्चा लगता है
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
ऐसी मंतिक़ से तो दीवानगी बेहतर 'अकबर'
कि जो ख़ालिक़ की तरफ़ दिल को झुका ही न सके
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
तू बाइस-ए-हस्ती है मैं हासिल-ए-हस्ती हूँ
तू ख़ालिक़-उल्फ़त है और मैं तिरा बंदा हूँ
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
शिकवा किस से कीजिए ख़ालिक़ की मर्ज़ी है यही
नुक्ता-चीं पैदा हों लाखों नुक्ता-दाँ कोई न हो
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ग़ज़ल
भला मख़्लूक़ ख़ालिक़ की सिफ़त समझे कहाँ क़ुदरत
उसी से नेति नेति ऐ यार दीदों ने पुकारा है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
नज़्अ' का वक़्त बुरा वक़्त है ख़ालिक़ की पनाह
है वो साअ'त कि क़यामत से सिवा होती है