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ग़ज़ल
अब मैं क्या अपनी मोहब्बत का भरम भी न रखूँ
मान लेता हूँ कि उस शख़्स में था कुछ भी नहीं
जव्वाद शैख़
ग़ज़ल
हाँ याद मुझे तुम कर लेना आवाज़ मुझे तुम दे लेना
इस राह-ए-मोहब्बत में कोई दरपेश जो मुश्किल आ जाए
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
क्यूँ नहीं लेता हमारी तू ख़बर ऐ बे-ख़बर
क्या तिरे आशिक़ हुए थे दर्द-ओ-ग़म खाने को हम
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ
तुम्हारे साथ भी कुछ दूर जा कर देख लेता हूँ