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ग़ज़ल
आँखें झपकी जाती हैं मतवाली की सी सूरत है
जागे किस की सोहबत में जो नींद के इतने माते हो
इम्दाद इमाम असर
ग़ज़ल
देख इधर ओ नींद के माते किस की अचानक याद आई
बीच से टूटी है अंगड़ाई हाथ उठते ही झूल पड़ा
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
आँखें मलते सेहन-ए-चमन में झूम के उट्ठे नींद के माते
देख सबा ने आ के ख़बर की चौंक मुसाफ़िर रात नहीं है
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
रात के जागे सुब्ह की हल्की नर्म हवा में सोए हैं
देखें कब तक नींद के माते उठने में ताख़ीर करें