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ग़ज़ल
अगर सुने तो उड़ान भर कर मरेगी तितली
जो तुम पे लिक्खा वो गीत गाने से क्या मिलेगा
इमरान महमूद मानी
ग़ज़ल
ज़ुहूर पीरी करेगी साहिब कोई न यूँ फिर मरेगी साहिब
जवानी कब तक रहेगी साहिब रहेगा दौर-ए-शबाब कब तक
मोहसिन ख़ान मोहसिन
ग़ज़ल
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
कब महकेगी फ़स्ल-ए-गुल कब बहकेगा मय-ख़ाना
कब सुब्ह-ए-सुख़न होगी कब शाम-ए-नज़र होगी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
उस ने सारी दुनिया माँगी मैं ने उस को माँगा है
उस के सपने एक तरफ़ हैं मेरा सपना एक तरफ़
वरुन आनन्द
ग़ज़ल
मर्ग-ए-'जिगर' पे क्यूँ तिरी आँखें हैं अश्क-रेज़
इक सानेहा सही मगर इतना अहम नहीं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
हो उम्र-ए-ख़िज़्र भी तो हो मालूम वक़्त-ए-मर्ग
हम क्या रहे यहाँ अभी आए अभी चले