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ग़ज़ल
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
किसी को देना ये मशवरा कि वो दुख बिछड़ने का भूल जाए
और ऐसे लम्हे में अपने आँसू छुपा के रखना कमाल ये है
मुबारक सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मिरी ज़ीस्त पर मसर्रत कभी थी न है न होगी
कोई बेहतरी की सूरत कभी थी न है न होगी
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
रूदाद-ए-मोहब्बत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए
दो दिन की मसर्रत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए