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ग़ज़ल
मोमिन ओ काफ़िर ओ मुश्रिक न तो मुर्तद मुल्हिद
अपने डाँडे तो किसी से भी कहीं मिलते नहीं
शमीम अब्बास
ग़ज़ल
लौह-ए-मुर्तद पे ये महमूद के लिख देना था
हुस्न वो शय है कि लेते ही ख़रीदार बिके
क़ुर्बान अली सालिक बेग
ग़ज़ल
अब कहीं कोई ठिकाना ही नहीं जुज़ कू-ए-यार
मुर्तद-ए-काअबा हुआ मर्दूद-ए-बुत-ख़ाना हुआ
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
वाइ'ज़ कमाल-ए-तर्क से मिलती है याँ मुराद
दुनिया जो छोड़ दी है तो उक़्बा भी छोड़ दे
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मैं अपने साथ जज़्बों की जमाअत ले के आया हूँ
जब इतने मुक़तदी हैं तो इमामत क्यूँ नहीं करते