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ग़ज़ल
मजीद अमजद
ग़ज़ल
साज़-ए-नशात-ए-ज़िंदगी आज लरज़ लरज़ उठा
किस की निगाहें इश्क़ का दर्द सुना के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
जो नफ़स था ख़ार-ए-गुलू बना जो उठे थे हाथ लहू हुए
वो नशात-ए-आह-ए-सहर गई वो वक़ार-ए-दस्त-ए-दुआ गया