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ग़ज़ल
प्यार-भरी उम्मीदों पर अग़्यार की वो ज़र-पोश निगाहें
काँटों के पैवंद लगा कर तू ने फूल बिखेरे दिल में
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
मोहब्बत तर्ज़-ए-पैवंद-ए-निहाल-ए-दोस्ती जाने
दवीदन रेशा साँ मुफ़्त-ए-रग-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़्वाहिश-ए-क़ुर्ब के पैवंद हैं हाथों में मिरे
ऐ जुनूँ-ज़ाद मुझे कितना सताया हुआ है
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
मजरूह गुलों के दामन में पैवंद लगे हैं ख़ुशबू के
देखा जो बहारों का ये चलन सुनसान बनों की याद आई