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ग़ज़ल
आशुफ़्ता उस के गेसू जब से हुए हैं मुँह पर
तब से हमारे दिल को है पेच-ओ-ताब क्या क्या
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दम साधे ज़बाँ बाँधे कभी सर न उठाएँ झुकते चले जाएँ
नाकारा हुई पोच सी ये सोच तिरी अब चल सोच नई अब
शमीम अब्बास
ग़ज़ल
नज़र आईं मुझे तक़दीर की गहराइयाँ इस में
न पूछ ऐ हम-नशीं मुझ से वो चश्म-ए-सुर्मा-सा क्या है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई
दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई