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ग़ज़ल
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
किधर लोटे किधर पोटे हँसे बोले किधर जा कर
कहाँ लिपटे कहाँ सोए कहाँ चिमटे कहाँ लिपटे
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
बीवी बच्चे नाती पोते दोस्त शनासा रिश्ते-दार
मेरे उसूलों से ना-वाक़िफ़ इक कुम्बा है सब का सब
इसहाक़ असर
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न ब'अद-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं