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ग़ज़ल
'शान' बे-सम्त न कर दे तुम्हें सहरा-ए-हयात
ज़ेहन में उन के नुक़ूश-ए-कफ़-ए-पा रहने दो
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
उफ़ ये तलाश-ए-हुस्न-ओ-हक़ीक़त किस जा ठहरें जाएँ कहाँ
सेहन-ए-चमन में फूल खिले हैं सहरा में दीवाने हैं
इब्न-ए-सफ़ी
ग़ज़ल
हमारे आह-ओ-नाला से ज़माना है तह-ओ-बाला
कभी है शोर सहरा में कभी है ग़ुल समुंदर में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
कोई है जो यहाँ इस कर्बला में जान पर खेले
कोई है जो यहाँ अब सूरत-ए-शाह-ए-नजफ़ निकले
अंजुम रूमानी
ग़ज़ल
ख़ीरा न कर सका मुझे जल्वा-ए-दानिश-ए-फ़रंग
सुर्मा है मेरी आँख का ख़ाक-ए-मदीना-ओ-नजफ़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अब तो जोश-ए-आरज़ू 'तस्लीम' कहता है यही
रौज़ा-ए-शाह-ए-नजफ़-अल्लाह दिखलाए मुझे