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ग़ज़ल
पूछ न उन निगाहों की तुर्फ़ा करिश्मा-साज़ियाँ
फ़ित्ने सुला के रह गईं फ़ित्ने जगा के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
ये सर्द रातें भी बन कर अभी धुआँ उड़ जाएँ
वो इक लिहाफ़ मैं ओढूँ तो सर्दियाँ उड़ जाएँ
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
वस्ल का मौसम हो तो ये सर्दियाँ ही ठीक हैं
हिज्र में क़ुर्बत की ये परछाइयाँ ही ठीक हैं
ए.आर.साहिल "अलीग"
ग़ज़ल
सदियाँ जिन में ज़िंदा हों वो सच भी मरने लगते हैं
धूप आँखों तक आ जाए तो ख़्वाब बिखरने लगते हैं
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
क़ीमत में उन के गो हम दो जग को दे चुके अब
उस यार की निगाहें तिस पर भी सस्तियाँ हैं