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ग़ज़ल
चला है ओ दिल-ए-राहत-तलब क्या शादमाँ हो कर
ज़मीन-ए-कू-ए-जानाँ रंज देगी आसमाँ हो कर
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
हमारी क़द्र करो हम हैं शाइ'रान-ए-जुनूँ
क़लम की नोक से फ़स्ल-ए-हयात काटते हैं
हाशिम रज़ा जलालपुरी
ग़ज़ल
शेर की आमद नहीं होती है क्या 'नाशाद' अब
शाइ'रान-ए-अस्र तो कहते हैं पेचीदा ग़ज़ल
नाशाद औरंगाबादी
ग़ज़ल
थे कभी 'मश्कूर' हम भी रौनक-ए-बज़्म-ए-सुख़न
हम भी शामिल थे शुमार-ए-शाएरान-ए-ज़िंदगी
मश्कूर मुरादाबादी
ग़ज़ल
मिटा दे जो फ़ज़ा की तीरगी माहौल की पस्ती
कोई ऐसा भी शे'र ऐ शाइ'रान-ए-ख़ुश-बयाँ लिखिए
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
ग़ज़ल
बरजा है गर मग़रूर हूँ अपने दिलाँ में शाइराँ
निर्ख़-ए-सुख़न कूँ तुझ सुख़न-फ़हमी ने अफ़्ज़ूनी दिया
उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला
ग़ज़ल
शा'इरान-ए-'अहद-ए-नौ ने कर दिया उर्दू का ख़ूँ
शा'इरी के नाम पर करने लगे फ़नकारियाँ
मीर अंजुम परवेज़
ग़ज़ल
शाइ'रान-ए-दहर को अब है परेशानी नसीब
करते हैं उस्ताद-ए-अकमल जम्अ दीवाँ इन दिनों
मोहम्मद इब्राहीम आजिज़
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
मिरी आरज़ू की दुनिया दिल-ए-ना-तवाँ की हसरत
जिसे खो के शादमाँ थे उसे आज पा के रोए