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ग़ज़ल
ये सारी आमद-ओ-शुद है नफ़स की आमद-ओ-शुद पर
इसी तक आना जाना है न फिर जाना न फिर आना
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
नफ़स की आमद-ओ-शुद है नमाज़-ए-अहल-ए-हयात
जो ये क़ज़ा हो तो ऐ ग़ाफ़िलो क़ज़ा समझो
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
याद में है तेरे दम की आमद-ओ-शुद पुर-ख़याल
बे-ख़बर सब से हैं इस दम की ख़बरदारी में हम
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मदार-ए-ज़िंदगी ठहरा नफ़स की आमद-ओ-शुद पर
हवा के ज़ोर से रौशन चराग़-ए-बज़्म-ए-हस्ती है
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
बतला दे तू ही वा-शुद-ए-दिल का मुझे इलाज
गुलशन में ऐ नसीम-ए-सहर जाऊँ क्या करूँ