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ग़ज़ल
जंगल की या बाज़ारों की धूल उड़ी है स्वागत को
हम ने घर के बाहर जब भी अपने पाँव निकाले हैं
अमीक़ हनफ़ी
ग़ज़ल
आने वाले कल का स्वागत कैसे होगा कौन करेगा
जलते हुए सूरज की किरनें सर पर होंगी तब सोचेंगे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
साजन के स्वागत को सूरज लाया भर भर थाली धूप
ख़ुश हो कर दोनों हाथों से चारों ओर उछाली धूप