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ग़ज़ल
मिरी रूह की हक़ीक़त मिरे आँसुओं से पूछो
मिरा मज्लिसी तबस्सुम मिरा तर्जुमाँ नहीं है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
क्यूँ ये मेहर-अंगेज़ तबस्सुम मद्द-ए-नज़र जब कुछ भी नहीं
हाए कोई अंजान अगर इस धोके में आ जाए तो
अंदलीब शादानी
ग़ज़ल
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई
दुनिया की वही रौनक़ दिल की वही तन्हाई
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
वक़्त होंटों से मिरे वो भी खुरच कर ले गया
इक तबस्सुम जो था दुनिया को दिखाने के लिए
ज़फ़र गोरखपुरी
ग़ज़ल
बे-रोए मिस्ल-ए-अब्र न निकला ग़ुबार-ए-दिल
कहते थे उन को बर्क़-ए-तबस्सुम हँसी से हम