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ग़ज़ल
तबक़ा-ए-ख़ाक में है आलम-ए-ख़ामोश-आबाद
जिस को बर्बाद समझते हो वो बर्बाद नहीं
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
कहाँ रग़बत रही है आज बच्चों को खिलौनों से
ये वो तबक़ा है जो अब चाक़ूओं से प्यार करता है
मुश्ताक़ अहज़न
ग़ज़ल
मिसरे पे उन के मिस्रा-ए-क़द का गुमाँ हुआ
इक तबक़ा बैत का तबक़-ए-आसमाँ हुआ
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ग़ज़ल
नहीं बे-हिजाब वो चाँद सा कि नज़र का कोई असर न हो
उसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो