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ग़ज़ल
ज़हे वो दिल जो तमन्ना-ए-ताज़ा-तर में रहे
ख़ोशा वो उम्र जो ख़्वाबों ही में बहल जाए
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
जुज़ इज्ज़ क्या करूँ ब-तमन्ना-ए-बे-ख़ुदी
ताक़त हरीफ़-ए-सख़्ती-ए-ख़्वाब-ए-गिराँ नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तमन्ना-ए-मुहाल-ए-दिल को जुज़्व-ए-ज़िंदगी कर के
फ़साना ज़ीस्त का पेचीदा करता जा रहा हूँ मैं
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
तमन्ना-ए-ज़बान महव-ए-सिपास-ए-बे-ज़बानी है
मिटा जिस से तक़ाज़ा शिकवा-ए-बे-दस्त-ओ-पाई का