आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "tore"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "tore"
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बहुत अपनी ताक बुलंद थी कोई बीस गज़ की कमंद थी
पर उछाल फाँदा वो बंद थी तिरे चौकी-दारों की जाग से
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
कभी तो सुब्ह तिरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्क-बार चले