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ग़ज़ल
वो कोई 'मीर' हों 'ग़ालिब' हों या 'अनीस'-ओ-'दबीर'
सुख़न-वरी से बड़ा कोई काम क्या करते
रईस सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
दिल-ए-गुदाज़ ओ लब-ए-ख़ुश्क ओ चश्म-ए-तर के बग़ैर
ये इल्म ओ फ़ज़्ल ये दानिश-वरी नहीं कोई शय
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
नश्शा-ए-ताज-वरी में हैं जो मदहोश 'जमील'
उन से बेहतर हैं तिरी बज़्म में आए हुए लोग