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ग़ज़ल
कभी ये ज़ोम कि तू मुझ से छुप नहीं सकता
कभी ये वहम कि ख़ुद भी छुपा हुआ हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
नसीर तुराबी
ग़ज़ल
पुरनम इलाहाबादी
ग़ज़ल
कुछ न कहने से भी छिन जाता है एजाज़-ए-सुख़न
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है