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नज़्म
हो न ये फूल तो बुलबुल का तरन्नुम भी न हो
चमन-ए-दह्र में कलियों का तबस्सुम भी न हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तू ने ख़ुद अपने तबस्सुम से जगाया है जिन्हें
उन तमन्नाओं का इज़हार करूँ या न करूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तेरे होंटों पे तबस्सुम की वो हल्की सी लकीर
मेरे तख़्ईल में रह रह के झलक उठती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जवानी है सुहाग उस का तबस्सुम उस का गहना है
नहीं आलूदा-ए-ज़ुल्मत सहर-दामानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बुरा मुझ से बढ़ कर न कोई भी होगा ख़ुदाया ख़ुदाया
कभी एक सिसकी कभी इक तबस्सुम कभी सिर्फ़ तेवरी
मीराजी
नज़्म
ख़ून है जिस की जवानी का बहार-ए-रोज़गार
जिस के अश्कों पर फ़राग़त के तबस्सुम का मदार
जोश मलीहाबादी
नज़्म
वो तबस्सुम ही तबस्सुम का जमाल-ए-पैहम
वो मोहब्बत ही मोहब्बत की नज़र आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
होंट हँसते हों दिखावे के तबस्सुम के लिए
दिल ग़म-ए-ज़ीस्त से बोझल रहे आज़ुर्दा रहे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उमँड आते थे जब अश्क-ए-मोहब्बत उस की पलकों तक
टपकती थी दर-ओ-दीवार से शोख़ी तबस्सुम की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कोई देखे तो है बारीक फ़ितरत का हिजाब इतना
नुमायाँ हैं फ़रिश्तों के तबस्सुम-हा-ए-पिन्हानी