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नज़्म
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
देखता उस के करिश्मे किस को इतना होश था
पत्ती पत्ती दम-ब-ख़ुद थी गुल चमन ख़ामोश था
शहज़ादी कुलसूम
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
वो हस्ती की सरहद-ए-आख़िर हुआ जहाँ हर सफ़र तमाम
बेबस है इंसाँ बेबस है तकती रह गई रोती शाम
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
''बियूक'' में हूक सी उठती है तो बल खाती है
''मरकरी'' ठहरती है ''डॉज'' भी कतराती है