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नज़्म
किताब-ए-मिल्लत-ए-बैज़ा की फिर शीराज़ा-बंदी है
ये शाख़-ए-हाशमी करने को है फिर बर्ग-ओ-बर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो हज़र बे-बर्ग-ओ-सामाँ वो सफ़र बे-संग-ओ-मील
वो नुमूद-ए-अख़्तर-ए-सीमाब-पा हंगाम-ए-सुब्ह
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
निशान-ए-बर्ग-ए-गुल तक भी न छोड़ उस बाग़ में गुलचीं
तिरी क़िस्मत से रज़्म-आराइयाँ हैं बाग़बानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सुर्ख़ ओ कबूद बदलियाँ छोड़ गया सहाब-ए-शब!
कोह-ए-इज़म को दे गया रंग-ब-रंग तैलिसाँ!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बुरा मुझ से बढ़ कर न कोई भी होगा ख़ुदाया ख़ुदाया
कभी एक सिसकी कभी इक तबस्सुम कभी सिर्फ़ तेवरी
मीराजी
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बर्फ़ ने बाँधी है दस्तार-ए-फ़ज़ीलत तेरे सर
ख़ंदा-ज़न है जो कुलाह-ए-मेहर-ए-आलम-ताब पर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
है रश्क-ए-महर ज़र्रा इस मंज़िल-ए-कुहन का
तुलता है बर्ग-ए-गुल से काँटा भी इस चमन का