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नज़्म
तुझ को भी दिल में बसाया है जो 'इक़बाल' के साथ
तो कहीं जा के ये अंदाज़-ए-कलाम आया है
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
तल्ख़ियाँ ज़ीस्त की हर तौर छुपाऊँ सब से
ख़ुशबूएँ याद की साँसों में बसाया न करूँ
इम्तियाज़ अहमद क़मर
नज़्म
कितनी बार उजाड़ा तुझ को कितनी बार बसाया है
अच्छी और बुरी क़िस्मत का दिल्ली तुझ पर साया है