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नज़्म
पर्दा-ए-मशरिक़ से जिस दम जल्वा-गर होती है सुब्ह
दाग़ शब का दामन-ए-आफ़ाक़ से धोती है सुब्ह
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अस्बाब-ए-ज़ाहिरी में न इन पर करो नज़र
क्या जाने क्या है पर्दा-ए-क़ुदरत में जल्वा-गर
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
ख़ुतूत-ए-रुख में जल्वा-गर वफ़ा के नक़्श सर-ब-सर
दिल-ए-ग़नी में कुल हिसाब-ए-दोस्ताँ लिए हुए