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नज़्म
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तो मुझ पे करता था जादू सा हुस्न-ए-इंसानी
कुछ ऐसा होता था महसूस जब मैं देखता था
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
माथे पे सख़्त-कोशी-ए-पैहम की दास्ताँ
आँखों में हुज़्न ओ यास की घनघोर बदलियाँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कमाल-ए-हुस्न और ये इंकिसार-ए-इश्क़ अरे तौबा
वो नाज़ुक हाथ मेरा गोशा-ए-दामन मआज़-अल्लाह
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
कौन समझेगा ब-जुज़ मेरे तिरा हुज़्न-ओ-अलम
जब तिरे दोश पे बिखरी भी न वो ज़ुल्फ़-ए-दराज़
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
हवा में उड़ता है काजल फ़ज़ा है हुज़्न से बोझल
हर एक कुंज की हलचल कोहर में डूब चली है
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
आ कि वाबस्ता हैं उस हुस्न की यादें तुझ से
जिस ने इस दिल को परी-ख़ाना बना रक्खा था
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
शुक्र शिकवे को किया हुस्न-ए-अदा से तू ने
हम-सुख़न कर दिया बंदों को ख़ुदा से तू ने