आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "خار"
नज़्म के संबंधित परिणाम "خار"
नज़्म
ख़ार-ओ-ख़स पर एक दर्द-अंगेज़ अफ़्साने की शान
बाम-ए-गर्दूं पर किसी के रूठ कर जाने की शान
जोश मलीहाबादी
नज़्म
फूल क्या ख़ार भी हैं आज गुलिस्ताँ-ब-कनार
संग-रेज़े हैं निगाहों में गुहर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
है दश्त अब भी दश्त मगर ख़ून-ए-पा से 'फ़ैज़'
सैराब चंद ख़ार-ए-मुग़ीलाँ हुए तो हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ऐ कि ख़्वाबीदा तिरी ख़ाक में शाहाना वक़ार
ऐ कि हर ख़ार तिरा रू-कश-ए-सद-रू-ए-निगार
जोश मलीहाबादी
नज़्म
डाकुओं के दौर में परहेज़-गारी जुर्म है
जब हुकूमत ख़ाम हो तो पुख़्ता-कारी जुर्म है