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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
पर मिरे गीत तिरे दुख का मुदावा ही नहीं
नग़्मा जर्राह नहीं मूनिस-ओ-ग़म ख़्वार सही
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
थी नज़र हैराँ कि ये दरिया है या तस्वीर-ए-आब
जैसे गहवारे में सो जाता है तिफ़्ल-ए-शीर-ख़्वार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो जो हर दीन से मुंकिर था हर इक धर्म से दूर
फिर भी हर दीन हर इक धर्म का ग़म-ख़्वार रहा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अर्ज़-ए-अलम में ख़्वार हुए हम बिगड़े रहे बरसों हालात
और कभी जब दिन निकला तो बीत गए जुग हुई न रात
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ताक़त-ए-सब्र अगर हो तो ये ग़म-ख़्वार भी हैं
हाथ ख़ाली हूँ तो ये जिन्स-ए-गिराँ-बार भी हैं
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
मिरे ग़म-ख़्वार मिरे दोस्त तुम्हें क्या मालूम
ज़िंदगी मौत के मानिंद गुज़ारी मैं ने
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
वो माँ हो बहन बीवी या कि बेटी हो सुनो लोगो
हर इक किरदार में रक्खा गया ग़म-ख़्वार औरत को