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नज़्म
नशीली आँखें, रसीली चितवन, दराज़ पलकें, महीन अबरू
तमाम शोख़ी, तमाम बिजली, तमाम मस्ती, तमाम जादू
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
शे'रों में करवटें ये नहीं सोज़-ओ-साज़ की
लहरें हैं ये हुज़ूर की ज़ुल्फ़-ए-दराज़ की
जोश मलीहाबादी
नज़्म
थोड़ी देर को साथ रहे किसी धुँदले शहर के नक़्शे पर
हाथ में हाथ दिए घूमे कहीं दूर दराज़ के रस्ते पर
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
ज़ुल्फ़ उस को-ऑपरेटिव सिलसिले की है दराज़
छेड़ते हैं हम कभी तो वो कभी रिश्वत का साज़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
उन की रातें ख़ौफ़-ए-रुस्वाई से होंगी जब दराज़
तेरे सीने में किसी शब का न होगा कोई राज़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
نہ ہو قناعت شعار گلچيں! اسي سے قائم ہے شان تيري
وفور گل ہے اگر چمن ميں تو اور دامن دراز ہو جا