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नज़्म
अपने माज़ी के तारों में हम से पिरोया गया है
हमीं में कि जैसे हमीं हों समोया गया है
नून मीम राशिद
नज़्म
वो पाकीज़ा शरारा बिजलियों ने जिस को धोया है
वो अँगारा कि जिस में ज़ीस्त ने ख़ुद को समोया है
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
जिस के मौजूद ही में ख़ुद को समोया जाए
वक़्त-ए-आइंदा को भी जिस में डुबोया जाए
मोहम्मद ज़ुबैर ख़ालिद
नज़्म
साजिदा ज़ैदी
नज़्म
किस की आँखों में समाया है शिआर-ए-अग़्यार
हो गई किस की निगह तर्ज़-ए-सलफ़ से बे-ज़ार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़ुदा सोया हुआ है अहरमन महशर-ब-दामाँ है
मगर मैं अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ता ही जाता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं ने हर चंद ग़म-ए-इश्क़ को खोना चाहा
ग़म-ए-उल्फ़त ग़म-ए-दुनिया में समोना चाहा