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नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
लबों पे सो गई कलियों की मुस्कुराहट भी
ज़रा भी सुम्बुल-ए-तुर्की लटें नहीं हिलतीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
निकहत-ए-गेसू को तेरी निकहत-ए-सुम्बुल लिखूँ
तेरे नर्म-ओ-नाज़ुक इन होंटों को बर्ग-ए-गुल लिखूँ
जय राज सिंह झाला
नज़्म
आग पैदाइश का अफ़्ज़ाइश का नाम
आग के फूलों में नस्रीं यासमन सुम्बुल शफ़ीक़-ओ-नस्तरन
नून मीम राशिद
नज़्म
क्यूँ उठा है जिंस-ए-शायर के परखने के लिए
क्या शमीम-ए-सुम्बुल-ओ-नस्रीं है चखने के लिए
जोश मलीहाबादी
नज़्म
क़ाबिल-ए-दीद है मश्शातगी-ए-फ़स्ल-ए-बहार
ज़ुल्फ़-ए-सुम्बुल में नया हुस्न नज़र आता है
परवेज़ शाहिदी
नज़्म
ज़मीं पर जाल फैलाया है कोसों ज़ुल्फ़-ए-सुम्बुल ने
अनादिल इन दिनों आते हुए गुलशन में डरते हैं
नज़्म तबातबाई
नज़्म
सुम्बुल को ज़ुल्फ़-ए-नाज़ को सुलझा के चल पड़ी
दामन को ख़ार ख़ार से उलझा के चल पड़ी
मेला राम वफ़ा
नज़्म
गुलशन को अपने सुम्बुल-ओ-रैहाँ पे नाज़ है
और बाग़बाँ को अपने गुलिस्ताँ पे नाज़ है
नारायण दास पूरी
नज़्म
पलीद चमगादड़ों का चेहरा नहीं तका था
अगरचे कैंसर के ज़र्द कीड़े रजज़ की लय पर थिरक रहे थे