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नज़्म
जैसे मुफ़्लिस की जवानी जैसे बेवा का शबाब
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जिस की पीरी में है मानिंद-ए-सहर रंग-ए-शबाब
कह रहा है मुझ से ऐ जूया-ए-असरार-ए-अज़ल
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिन्हें सहर निगल गई, वो ख़्वाब ढूँढता हूँ मैं
कहाँ गई वो नींद की, शराब ढूँढता हूँ मैं
आमिर उस्मानी
नज़्म
शबाब रंगीं, जमाल रंगीं, वो सर से पा तक तमाम रंगीं
तमाम रंगीं बने हुए हैं, तमाम रंगीं बना रहे हैं
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
इस में तो मेरी बहुत क़ीमती तस्वीरें थीं
इस में बचपन था मिरा और मिरा अहद-ए-शबाब