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नज़्म
शराब-ए-बे-ख़ुदी से ता-फ़लक परवाज़ है मेरी
शिकस्त-ए-रंग से सीखा है मैं ने बन के बू रहना
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिन्हें सहर निगल गई, वो ख़्वाब ढूँढता हूँ मैं
कहाँ गई वो नींद की, शराब ढूँढता हूँ मैं
आमिर उस्मानी
नज़्म
लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हिंद
सब फ़लसफ़ी हैं ख़ित्ता-ए-मग़रिब के राम-ए-हिंद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस की मेहनत का अरक़ तय्यार करता है शराब
उड़ के जिस का रंग बिन जाता है जाँ-परवर गुलाब
जोश मलीहाबादी
नज़्म
बूँद भर दे न सका कोई मोहब्बत की शराब
यूँ तो मय-ख़ाने का मय-ख़ाना लुटा देखा है