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नज़्म
अली अकबर नातिक़
नज़्म
हक़ीक़त में वही बकरा है अच्छा देख कर जिस को
क़साई कि उठे फ़र्बा है आली-शान है बकरा
शाहीन इक़बाल असर
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़ितना-ए-फ़र्दा की हैबत का ये आलम है कि आज
काँपते हैं कोहसार-ओ-मुर्ग़-ज़ार-ओ-जूएबार