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नज़्म
हम भी चोर सिपाही लुक-छुप आँख मिचौली खेलेंगे
तारों के संग खेल रहा है ऊँचा नीचा टीला चाँद
अलीम अख़्तर मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
कौन से चोर हाथों से लुट कर आज ये घर आबाद किया है
बरसों से सोंधी मिट्टी ने कैसी हीकड़ जोत जगाई
सलाहुद्दीन परवेज़
नज़्म
गुल करो शमएँ बढ़ा दो मय ओ मीना ओ अयाग़
अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
नम-ए-लब को तरसती हैं सो प्यास इन की न पूछो तुम
ये इक दो जुरओं की इक चुह्ल है और चुह्ल में क्या है