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नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
अहल-ए-ईमाँ जस तरह जन्नत में गिर्द-ए-सलसबील
ताज़ा वीराने की सौदा-ए-मोहब्बत को तलाश
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
है लहद इस क़ुव्वत-ए-आशुफ़्ता की शीराज़ा-बंद
डालती है गर्दन-ए-गर्दूं में जो अपनी कमंद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दामन पे जिन के गर्द भी उड़ कर नहीं पड़ी
मारी न जिन को ख़्वाब में भी फूल की छड़ी
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
तेरी ही गर्दन-ए-रंगीं में हैं बाँहें अपनी
तेरे ही इश्क़ में हैं सुब्ह की आहें अपनी
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अब्बास ताबिश
नज़्म
वो 'भगत-सिंह' अब भी जिस के ग़म में दिल नाशाद है
उस की गर्दन में जो डाला था वो फंदा याद है