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नज़्म
तुम्हारे दिल के इस दुनिया से कैसे सिलसिले होंगे
तुम्हें कैसे गुमाँ होंगे तुम्हें कैसे गिले होंगे
जौन एलिया
नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
दिल तो चाहा पर शिकस्त-ए-दिल ने मोहलत ही न दी
कुछ गिले शिकवे भी कर लेते मुनाजातों के बा'द
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
फ़ज़ा में घुल से गए हैं उफ़ुक़ के नर्म ख़ुतूत
ज़मीं हसीन है ख़्वाबों की सरज़मीं की तरह
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जो मरहलों में साथ थे वो मंज़िलों पे छुट गए
जो रात में लुटे न थे वो दोपहर में लुट गए
आमिर उस्मानी
नज़्म
हुई जुम्बिश अयाँ ज़र्रों ने लुत्फ़-ए-ख़्वाब को छोड़ा
गले मिलने लगे उठ उठ के अपने अपने हमदम से