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नज़्म
दिल-ए-मुर्दा को हो वो जज़्बा-ए-बेताब अता
मरज़-ए-पस्ती-ए-मिल्लत का जो दरमाँ कर दे
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
ये बज़्म-ए-शो'ला-कारी ये हरीम-ए-आतिश-अफ़्शानी
ये क़शक़े ये ‘अबाएँ ये गिरानी ये गिराँ-जानी
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
ऐ सती ऐ जल्वा-गाह-ए-शोला-ए-तनवीर-ए-हुस्न
पाक-दामानी का नक़्शा है तिरी तस्वीर-ए-हुस्न
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
औज-ए-तक़्दीस को पस्ती की अदा भा गई क्यूँ
तेरी तन्हाई की जन्नत पे ख़िज़ाँ छा गई क्यूँ
अख़्तर शीरानी
नज़्म
आह क्या क्या आज-कल रंगीनियाँ देहली में हैं
रास्तों पर चलती-फिरती बिजलियाँ देहली में हैं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
ऐ ख़ाक-ए-हिंद तेरी 'अज़्मत में क्या गुमाँ है
दरिया-ए-फ़ैज़-ए-क़ुदरत तेरे लिए रवाँ है
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
ऐ ख़ाक-ए-हिंद तेरी अज़्मत में क्या गुमाँ है
दरिया-ए-फ़ैज़-ए-क़ुदरत तेरे लिए रवाँ है