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नज़्म
क्या कहूँ 'शाहिद' किसी से थी ये ऐसी ग़म की शाम
दिल में सोज़-ए-ना-मुकम्मल लब पे आह-ए-ना-तमाम
शाहिद सागरी
नज़्म
अगर किसी पयम्बर-ए-अज़ीम की नज़र उठी
निगाह बाज़गश्त-ए-ना-मुराद की शिकस्तगी के वार से
सय्यद मुबारक शाह
नज़्म
जले ख़ामोश मानिंद-ए-शम्अ' ना-कामियाबी पर
मगर बन कर बगूला आह-ए-पुर-ग़म कू-बकू निकली
मंझू बेगम लखनवी
नज़्म
नाज़नीनों का ये आलम मादर-ए-हिन्द आह आह
किस के जौर-ए-ना-रवा ने कर दिया तुझ को तबाह?
जोश मलीहाबादी
नज़्म
आह ख़ाक-ए-हिंद में तू देर से ख़्वाबीदा है
ज़ीनत-ए-हर-बज़्म तेरा जल्व-ए-ना-दीदा है
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
अदू जिस का ख़राब-ए-ग़म शिकार-ए-ना-मुरादी था
हर इक साहिल-नशीं जाँ-सोज़ तूफ़ानों का आदी था